लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में आप लोग संशय में होंगे कि क्या किया जाए। किस पार्टी को या किस नेता को वोट दिया जाए। हालांकि हर आदमी को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर वोट देना चाहिए। लेकिन भारत में ऐसा करना संभव नहीं। दरअसल इस कॉन्सेप्ट के पीछे की अवधारण यह है कि अगर आप एक अच्छे उम्मीदवार को चुनते हैं तो उसका लाभ अच्छी सरकार के गठन में होता है। यानि जिस पार्टी में ज्यादा अच्छे नेता चुने जाएंगे, उसी पार्टी की सरकार भई बनेगी। लेकिन भारत में 60 प्रतिशत से ज्यादा जनता अजीब फैसले करती है। पता नहीं क्या मानसिकता है कि बाहुबलियों को ही जीत दिला देती है। जितने भी अपराधी हैं वो तो आज संसद में घुसे बैठे हैं। ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है। वो देश चलाएंगे या अपराध बढ़ाएंगे? ऐसे में वोट देने के लिए पार्टी के आधार और उसकी विचारधारा को जानकर ही वोट देना सही फैसला होगा। अब सवाल उठता है कि है कि किस पार्टी को वोट दिया जाए। देखिए, आदमी पार्टी का चुनाव दो आधार पर करता है। एक तो ये कि उसे उसकी विचारधारा पसंद हो और दूसरा कारण होता है उसको पार्टी विरासत में मिलना। यानि अगर आपके पिता जी कांग्रेस के समर्थक हैं तो आप भी बचपन से ही कांग्रेस की तरफ रुझान रखेंगे और अघर पिता जी बीजेपी को पसंद करते हैं तो आपकी विचारधारा भी बीजेपी से मिलेगी। लेकिन आज समय बदल गया है। आप बड़े भी हो गए हैं और इस लायक भी कि अपनी पसंद की पार्टी का चुनाव कर लें। सबसे पहले तो हम लोगों को प्रण लेना चाहिए कि हम मुख्य दो राष्ट्रीय पार्टियों में से किसी एक का चुनाव करें।
आप देखें तो अमेरिका का लोकतंत्र इसलिए सफल है क्योंकि वहां मात्र दो दल हैं। लेकिन भारत में तो दलों की भरमार है। ऐसे में हमें दो प्रमुख राष्ट्रीय दलों, बीजेपी और कांग्रेस में से ही किसी एक को चुनना चाहिए ताकि कोई भी सरकार बने तो पूर्ण बहुमत के साथ। क्योंकि जब से गठबंधन वाली सरकारों का गठन होना शुरु हुआ है, राजनीति और अधिक निम्न हो गई है। कई दलाल नेता ऊपर उठ रहे हैं। सरकार गिराना बनाना सौदेबाज़ी पर निर्भर करने लगा है। बिना ये फिक्र किए
कि इससे जनता को कितना नुकसान उठाना पड़ रहा है। अत: वोट दें तो या तो कांग्रेस को या बीजेपी को ताकि कोई भी सरकार बने तो पूर्ण बहुमत के साथ। प्रधानमंत्री स्वतंत्र फैसला कर सकें बिना किसी दवाब के। अन्यथा स्थानीय दल कई बार कामों में पंगा अड़ा देते हैं। जैसे कि बीजेपी इसी गंठबंधन धर्म की वजह से राम मंदिर का निर्माण नहीं कर पाई। साथ ही यूपीए सरकार को भी वाम दलों के मूर्खतापूर्ण रवैये के परमाणु डील को अमली जामा पहनाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। वैसे भी आप किस स्थानीय दल का पल्ला पकड़ेंगे? समाजवादी पार्टी जो कि द***लों की पार्टी बन बैठी है या फिर बीएसपी जो कि यूपी में बाहुबलियों, अपराधियों को टिकट दे रही है। लालू और पासवान की पार्टियों को वोट देंगे क्या आप? ये लोग ऐसे हैं जिन्हें सिर्फ सत्ता से मतलब है। वाम दलों की तो बात ही मत करो। बात करते हैं आम आदमी की, पूंजीवाद का करते हैं विरोध और अपने बच्चों को अमेरिका और लंदन में पढ़ाते हैं। आपके पास बचते हैं दो विकल्प......... कांग्रेस और बीजेपी। किसको वोट देंगे आप?

3 comments:
ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
लगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
दो मे से कम बुरा देखना है ये हमारी मज़बूरी है और कुर्सी के बिना सब बडी बडी बातें करते है कुर्सी पे बैथने के बाद सब एक से हो जाते है ।
मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in
इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.
काव्यधारा टीम
गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के योगी आदित्यनाथ, बसपा के बाहुबली पं. विनय शंकर तिवारी, सपा के भोजपुरी सिने स्टार मनोज तिवारी एवं कांग्रेस के लालचंद निषाद चुनाव लड़ रहे हैं। विगत कई बार से भाजपा के योगी आदित्यनाथ ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस बार ब्राह्मण वोट में सेंध लगाने के लिए दो-दो उम्मीदवार आ गए हैं। अब की बार मुकाबला थोड़ा कठिन जरूर है परन्तु जीतेंगे तो योगी आदित्यनाथ ही। इसमें कोई शक नहीं।
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